भारत में आपातकालीन स्थिति, का सन्दर्भ इंदिरा गाँधी की सरकार के शासन में 1975 से 1977 के बीच के उन 19 महीनो से है, जिसमे तत्कालीन प्रधानमंत्री के कहने पर, तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक 19 महीनो तक चली। इस आपातकालीन अवधि के दौरान सरकार द्वारा कई अलोकतांत्रिक कार्य किये गए, जिसकी वजह से यह काल आजाद भारत के इतिहास में एक काले धब्बे की तरह है।
आगे हम जानेंगे कि क्यों इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लगाया, तथा उस समय ऐसे कोनसे कार्य थे जो कि इस समयावधि को अलोकतांत्रिक कहलवा रहे है। पर, इससे पहले हमें “आपातकाल” के बारे में जरूर जान लेना चाहिए कि किन अवस्थाओं में सरकार देश में आपातकाल की घोषणा कर सकती है।

क्या है आपातकाल?

साधारण भाषा में, आपातकाल का अर्थ ऐसी गंभीर स्थिति से है जहा हमे तुरंत कोई निर्णय लेना पड़ता है। उदहारण के तौर पर, मान लो कि किसी के घर में आग लग जाती है, तो ऐसे समय में हम क्या करेंगे? ज्यादा समय नहीं गवां सकते, इसलिए हमे तुरंत कुछ निर्णय लेना होगा कि कैसे आग में फसे लोगो को बाहर निकला जाये, मदद कैसे बुलाई जाए, मदद नहीं आती तब तक क्या करे, आदि।
इसी प्रकार जब हमारे देश में बाहरी आक्रमण, युद्ध या ससस्त्र विद्रोह जैसी गंभीर स्थिति बन जाती है, और ऐसे में जब भारत देश या उसके किसी भी क्षेत्र की सुरक्षा पर खतरा हो तो, राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोसित करने का अधिकार होता है।

भारतीय संविधान में आपातकाल के प्रकार-

भारतीय संविधान, राष्ट्रपति को तीन प्रकार की आपात स्थितियों की घोषणा करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल, 356 के तहत राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन), तथा अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल।
  1. राष्ट्रीय आपातकाल– संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत, अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश में युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह जैसी गंभीर स्थिति बन गयी है, और अब कारण देश या किसी क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा है, तो ऐसी स्तिथि देश में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने का प्रस्धान है।
  2. राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन)– संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, जब राष्ट्रपति को लगता है कि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करने में असमर्थ है, तो ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार, राज्य मशीनरी का प्रत्यक्ष नियंत्रण ले सकती है तथा यहाँ राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकती है।
  3. वित्तीय आपातकाल– संविधान के अनुच्छेद ३६० के तहत अगर राष्ट्रपति को लगता है कि देश या देश के किसी भी क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता को खतरा है तो ऐसी स्थिति में वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। नोट- इस प्रकार की आपातकाल आज तक देश में कभी नहीं लगी है।
दिरा गांधी के साथ भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद
भारत में आपातकाल का सन्दर्भ 1975 से 1977 के बीच के 19 महीनो से लिया जाता है जिनमे तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल लगाया गया था। 25 जून 1975 को तत्कालीन राष्ट्रपति, फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंती इंदिरा गाँधी के कहने पर संविधान के अनुच्छेद 352 के अधीन देश में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 को हटा दिया गया। इस आपातकालीन अवधि के बीच के 19 महीनो को आज भी स्वतंत्र भारत के इतिहास के काले दिनों में गिना जाता है। आज़ाद भारत के इतिहास का यह सबसे विवादस्पद तथा अलोकतांत्रिक काल था। यही वो समय था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री के आदेश पर विरोधी नेताओ की गिरफ्तारियां होने लगी, प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने वालो पर गोलिया चलायी गयी तथा बड़े पैमाने पर लोगो की जबरन नसबंदी की जाने लगी
आगे बढ़ने से पहले हमें ये भी जान लेना चाहिए कि क्या वजह रही जिनके चलते इंदिरा गाँधी को देश में आपातकाल लगाने जैसा बड़ा फैसला लेना पड़ा। क्या वाकई देश में ऐसी गतिविधिया चल रही थी जिसकी वजह से देश में आपातकाल लगाना पड़ा, या फिर इंदिरा गाँधी के कुछ निजी कारण ही थे। चलिए आगे पढ़ते है –

आपातकाल लगाने की वजह-

इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाया जाने का सबसे बड़ा कारण थे- राजनाराण। 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली में इंदिरा गाँधी से हारने के बाद राजनाराण ने इनके खिलाफ चुनाव में गलत तरीको से जितने का मामला दर्ज कराया। 4 साल बाद, 12 जून 1975 इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया जो कि राजनारायण के पक्ष में रहा। कोर्ट ने इंदिरा गाँधी को वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत उपयोग, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोपों में दोषी पाया। उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी को अगले 6 सालो के लिए पद तथा चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।
केस जीतने के बाद अपने वकील शान्ति भूषण के साथ राजनारायण
1976 के चुनाव सामने थे और ऐसे में इंदिरा गाँधी को हर किसी हाल में यह चुनाव लड़ना था। पर, इस फैसले की वजह से इंदिरा गाँधी को अपना राजनैतिक जीवन अँधेरे की ओर जाता दिख रहा था, और इससे रोकने का एकमात्र तरीका था- देश में आपातकाल। इंदिरा गाँधी ने अगले कुछ ही दिनों के बाद देश में आपातकाल की घोषणा कर दी।

घटनाएं-

इंदिरा गाँधी अपने बेटे संजय गाँधी के साथ, जिनको विपक्ष बर्दास्त नहीं था, जिन्होंने संविधान का कभी भी सम्मान नहीं किया।
जॉर्ज फर्नांडिस को ‘अनथक विद्रोही’ (rebel without a pause) कहा जाता है. जंजीरों में जकड़ी उनकी तस्वीर आपातकाल की पूरी कहानी बयां करती है


आपातकाल के दौरान नरेंद्र मोदी। इनको गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना भेष बदलना पड़ा।
  • विपक्षी नेताओ की गिरफ्तारियां – 1976 के शुरुआत से ही इंदिरा गाँधी ने विपक्षी नेताओ को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था। जयप्रकाश नारायण जैसे कई नेताओ को गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस को अपनी ही पार्टी में भी विरोध का डर सता रहा था इसलिए कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य चंद्रशेखर और संसदीय दल के सचिव रामधन को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। कई नेता तो गिरफ्तारी के दर से देश छोड़कर भाग गए थे।
  • संविधान में तेजी से बदलाव – आपातकाल के पहले ही हफ्ते में इंदिरा गाँधी ने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) , अनुच्छेद 21 (जीवन तथा सम्पति सुरक्षा का अधिकार), तथा अनुच्छेद 22 ( गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर अदालत के सामने पेश करने का अधिकार) को निलंबित कर दिया। जनवरी 1976 में अनुच्छेद 19 को भी निलंबित कर दिया जो कि अभिव्यक्ति, प्रकाशन करने, संघ बनाने और सभा करने की आजादी देता था।
  • प्रेस सेंसरशिप – अखबार, टीवी, रेडियो आदि हर तरह की मिडिया पर पाबन्दी लगा दी गयी. अब अखबार के केवल वही छाप सकता था जो सरकार चाहती थी। यहां तक कि अंग्रेजी अखबार “इंडियन एक्सप्रेस” का प्रकाशन रोकने के लिए प्रिंटिंग प्रेस की बिजली तक गुल करवा दी गयी थी।
  • नसबंदी अभियान – संजय गाँधी के नेतृत्व में चलाये गए इस अभियान में बड़ी तादाद में लोगो को घरो से बाहर निकालकर जबरन नसबंदी की जाने लगी। यह तक कि आंकड़े बढ़ाने के लिए 65 70 साल के लोगो को भी पकड़कर नसबंदी की गयी.

आपातकाल के दौरान प्रेस स्वतंत्रता पर आर के लक्ष्मण का कार्टून (यह कार्टून भी भारत से बाहर छपा था)
आखिर, 1977 में इमरजेंसी हटा ली जाती है तथा चुनाव कराये गए। इस बार “जनता पार्टी” की जीत होती है जिसके बाद “मोरारजी देसाई” को प्रधानमंत्री के पद के लिए चुना जाता है।
तो प्रिय पाठको, आपको कैसा लगा हमारा यह “आपातकाल” पर लिखा गया आर्टिकल। उम्मीद है आपको सारी जानकारी मिल गयी होंगी। अगर अब भी कुछ सवाल आपके मन में है, तो निचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है। धन्यवाद!